
– बिजिंग सम्मेलन के कई हैं मायने, अमेरिका से आगे निकलने में लगा चीन
बीजिंग: इस्राइल-फलस्तीन संकट के बीच जिनपिंग ने अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना के मुद्दे पर बीजिंग में बुलाए सम्मेलन में न केवल यूरोपीय संघ और पश्चिमी देशों पर हमला बोला, बल्कि बैठक में रूसी राष्ट्रपति पुतिन की उपस्थिति के भी निहितार्थ थे।
दुनिया के 150 से ज्यादा देशों में 30 खरब अमेरिकी डॉलर के निवेश वाली बेल्ट एंड रोड परियोजना को महत्वहीन करने के, ताकि चीनी अर्थव्यवस्था पर दुनिया की निर्भरता कम हो, पश्चिमी देशों और यूरोपीय संघ के प्रयासों पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जहां चेतावनी दी है, वहीं इस विशाल परियोजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए आगे की नीति तय करने की शुरुआत भी की है।
जिनपिंग ने विगत 17-18 अक्तूबर को बीजिंग में हुए दो दिवसीय सम्मेलन में अपना इरादा स्पष्ट कर दिया, जिसमें यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, श्रीलंकाई राष्ट्रपति विक्रमसिंघे, पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवार उल हक काकड़ और 140 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि, 30 अंतरराष्ट्रीय संगठनों सहित कई देशों के नेता, मंत्रिस्तरीय अधिकारियों के साथ-साथ व्यवसाय व शिक्षा क्षेत्र एवं गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।
भारत ने चीन की 60 अरब डॉलर वाली चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का हवाला देते हुए, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के रास्ते बनाया जा रहा है, बीआरआई का बहिष्कार किया। चीन अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई को आगे बढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकता, इसलिए चार जुलाई, 2023 को आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नेताओं के शिखर सम्मेलन के अंत में जारी नई दिल्ली घोषणा के अंतिम मसौदे में एक पैराग्राफ जोड़ा गया था, जिसे भारत ने खारिज कर दिया था।
वर्ष 2022 में समरकंद घोषणा के दौरान भी भारत जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना बीआरआई का विरोध करने से पीछे नहीं हटा था। भारत जी-20 के मसौदे से बीआरआई पहल को बाहर रखने के प्रति सतर्क रहा और चतुराईपूर्ण कूटनीति से सर्वसम्मति हासिल की।
भारत पाकिस्तान द्वारा बीआरआई के अंध-समर्थन के खिलाफ है, जो कश्मीर के लिए सुरक्षा खतरा पैदा कर सकता है, क्योंकि बीआरआई पाक कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है, जो तकनीकी रूप से भारतीय क्षेत्र है और कश्मीर घाटी से सटा हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बीआरआई के ‘छिपे हुए कर्ज’ और निम्न मध्यम आय वाले देशों को ‘ऋण जाल नीति’ में फंसाने की चीनी नीति का डर दूर करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना प्रस्तुत की है।
एड डाटा द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, एक तिहाई से अधिक परियोजनाओं को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बढ़ती नकारात्मक प्रतिक्रिया ने मलयेशिया और तंजानिया जैसे कुछ देशों को बीआरआई सौदे रद्द करने के लिए प्रेरित किया है। लेकिन पर्यवेक्षकों ने संभावित आर्थिक दबाव की भी चिंता जताई है, जहां विदेशी सरकारें बीजिंग के एजेंडे का पालन करने के लिए दबाव महसूस करती हैं या चीन द्वारा निवेश वापस लेने का जोखिम झेल रही हैं। एड डाटा के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि चीनी सरकार के स्वामित्व वाली संस्थाओं द्वारा विदेशी सरकारों को दिए गए ऋण के अनुबंध में ऐसे प्रावधान हैं, जो ‘संभावित रूप से ऋणदाताओं को उधारकर्ता देशों की घरेलू और विदेशी नीतियों को प्रभावित करने की अनुमति देते हैं।’
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि घरेलू अर्थव्यवस्था में गिरावट और कोविड-19 के निरंतर प्रभाव सहित कई कारणों से कई देश ऋण चुकाने में विफल हो रहे हैं, जिसके चलते चीनी रणनीतिकारों के दृष्टिकोण में बदलाव दिख रहा है। चीन का प्रभाव तब तक और कम हो सकता है, जब तक कि आने वाले समय में विभिन्न राष्ट्रों को मिलने वाला विदेशी ऋण व सहायता अपने चरम स्तर पर न पहुंच जाए। चीन ने बीआरआई के तहत लापरवाही से विभिन्न देशों को ऋण बांटा।
अमेरिका स्थित रोडियम ग्रुप के अनुसार, 2020 से 2022 के बीच चीनी ऋणदाताओं से जुड़े 76.8 अरब डॉलर के ऋण अनिवार्य रूप से गैर-निष्पादित संपत्ति बन गए, जो 2017 से 2019 के बीच की अवधि की तुलना में 4.5 गुना अधिक है। चीन ने मुद्रा विनिमय सहित बेल्ट ऐंड रोड से जुड़े देशों को अपनी वित्तीय सहायता बढ़ा दी है, पर उसके नए निवेश में गिरावट आई है। हालांकि चीन की आर्थिक मंदी ने भी इसमें भूमिका निभाई है, क्योंकि इसका विदेशी मुद्रा भंडार, जो नए निवेश का समर्थन करता है, अपेक्षाकृत 30 खरब डॉलर के करीब स्थिर बना हुआ है।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि बीआरआई के जरिये चीन महाशक्ति देश के रूप में अमेरिका की जगह लेना चाहता है। रिपोर्टों के अनुसार, चीन ने दक्षिण एशियाई देशों को अपनी ऋण जाल नीति में फंसा लिया है, जिसने उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ डाला है। भारत और भूटान को छोड़कर, कई राष्ट्र बीआरआई के माध्यम से चीन की ऋण नीति में फंस गए हैं और नेपाल को भी इसी दुविधा का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका आमतौर पर गरीब देशों को सौ प्रतिशत अनुदान के जरिये मदद करता है, लेकिन चीन की ऋण जाल नीति में फंसे देशों की अर्थव्यवस्थाएं नष्ट हो रही हैं और पाकिस्तान चीन का सबसे बड़ा शिकार है।
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