
– पूर्व कनिष्ठ ब्लाक प्रमुख सरेनी ने रायबरेली आईटीआई स्थित वृद्धजन आश्रम में पिता की श्राद्ध पर बुजुर्गों को कराया भोजन
रायबरेली : भारतीय हिन्दू संस्कृति एवं परम्परा के अनुसार श्राद्ध का अभिप्राय श्रद्धा से है। इसलिए हर वर्ष पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म किया जाता है। प्रत्येक वर्ष पितरों की प्रसन्नता, दु:खों से मुक्त होने का पर्व श्राद्ध 16 दिनों तक मनाया जाता है।प्रत्येक परिवारीजन मृत्युतिथि पर श्राद्ध, पिंडदान, जलदान आदि करके पितरों को तृप्त करते हैं। सनातन धर्मावलंबियों द्वारा पितरों की कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म आदि करना आवश्यक समझा जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी, शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संतानें उत्पन्न होती हैं। श्राद्ध करने से वृद्धि, पुष्टि, स्मरण शक्ति, धरणा शक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। उक्त उद्गार शुक्रवार को पूर्व कनिष्ठ ब्लॉक प्रमुख सरेनी एवं समाजसेवी शैलेंद्र अग्निहोत्री ने रायबरेली आईटीआई स्थित वृद्धजन आश्रम में पिता स्व. पंडित राजकुमार अग्निहोत्री की श्राद्ध पर कही।

पूर्व कनिष्ठ ब्लाक प्रमुख ने इससे पहले बुजुर्गों को भोजन कराया। उन्होंने कहा कि आज पिता की श्राद्ध पर वृद्धजन आश्रम में आकर लोगों को भोजन कराकर परमसुख की प्राप्ति व मन को शांति मिली है। साथ ही साथ कहा कि भारतीय संस्कृति में पुत्रों या पौत्रों द्वारा पितरों के प्रति श्रद्धा और आस्था रखते हुए उनकी मुक्ति, सद्गति और शांति के लिए श्राद्ध कर्म करने का उत्तरदायित्व निभाना एक सभ्य, संस्कारी और जिम्मेदार मनुष्य की निशानी समझा जाता है। श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्वक किया हुआ, वह संस्कार जिससे पितर संतुष्टि प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिजनों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। मानवीय मूल्यों पर विचार करते हुए यह ठीक भी है कि हमें पारिवारिक जड़ों को याद रखते हुए अपने पूर्वजों के लिए आदर एवं सम्मान व्यक्त करना चाहिए। धार्मिक संस्कारों तथा सामाजिक परम्पराओं को जीवंत रखने के लिए यह आवश्यक भी है। इस मौके पर नीतू अग्निहोत्री, ओमप्रकाश, गौरव, सुरेश, महेंद्र अग्रवाल, बब्बी शुक्ला, डॉ एके दुबे, सतीश सिंह, रेनू सिंह, नीतू, विभा, विमलेश, राजेश आदि मौजूद रहे।
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